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लेखनी प्रतियोगिता -25-Mar-2023 भाग्य और पुरुषार्थ


                भाग्य  और पुरुषार्थ

            आदित्य व वैभव दोनौ दोस्त थे। दोनौ की दोस्ती बहुत पक्की थी एक दूसरा एक दूसरे के बिना नही रह सकता था। लेकिन दोनौ के विचार अलग अलग थे। आदित्य कर्म पर विश्वास करता था। वह कहता था कि जब तक कर्म नहीं करोगे हमारा भाग्य क्या कर सकता है ।

     जबकि बैभव कर्म के साथ तकदीर पर अधिक विश्वास करता था। वह कहता था कि कितनी भी मेहनत करलो यदि हमारी तकदीर अच्छी  नही होगी  तब हाथ आई हुई लछ्मी भी  निकल जाती है।

     दोनो इस बिषय पर बहुत बहस करते रहते थे। जब दोनौ ने बारहवी की परीक्षा पास करली उसके बाद उन दोनौ को कालेज में जा था दोनौ ने अलग अलग कालेज में एड्मीसन लिया। 

     आदित्य व बैभव दोनौ अलग होने से पहले एक महात्मा के पास गये और अपने अपने भाग्य के विषय में पूछने लगे। महात्मा ने सबसे पहले बैभव का हाथ अपने हाथ में लेकर बोले," बेटा तेरी तकदीर में बहुत धन लिखा है। तेरे पास किसी भी तरह की कमी नहीं रहेगी। तू करोडौ़ में खेलेगा।"

      महात्माजी की भविष्यवाणी सुनकर वह बहुत खुश हुआ। और उसे अब अपनी तकदीर पर घमण्ड होगया।

     इसके बाद महात्माजी ने आदित्य का भविष्य बताते हुए बोले," बेटा तेरा भाग्य बहुत कमजोर है तुझे बहुत संघर्ष करने पर भी सफलता नही मिलेगी। "

        महात्माजी की भविष्य सुनकर आदित्य पर कोई प्रभाव नही हुआ क्यौकि उसे अपने कर्म पर भरोसा था।

      बैभव ने उस दिन के बाद पढाँई पर भी ध्यान देना छोड़ दिया और वह महात्मा के बताये गये पर विश्वास करता रहा। उधर आदित्य ने कभी भी मेहनत से मुँह नही मोडा़। वह सफलता की सीढी़ चढ़ता रहा और इन्जीनियरिंग की डिग्री मे अच्छी रैंक प्राप्त की। और उसने इसके बाद खुद की फैक्ट्री डाल ली।

       आदित्य का नाम बहुत ऊँचाईयौ पर छा गया। उधर बैभव भाग्य के सहारे हाथ पर हाथ रखे बैठा रहा। जो भी पैतृकि सम्पत्ति थी वह भी समाप्त होगयी। और वह सड़क पर आगया।

        एक दिन बैभव आदित्य के पास सहायता मांगने आया ।आदित्य बोला," मेरे दोस्त मै तेरी तन मन व धन सब तरह से सहायता करने को तैयार हूँ लेकिन एक बात तुझे समझनी चाहिए कि बिना कर्म किये  अच्छी तकदीर वाले भी दुःखी होजाते है।"

      उस दिन के बाद बैभव की समझ में आगया कि बिना कर्म किये सफलता नही प्राप्त होती है। इस लिए कर्म व तकदीर दोनौ  का मिलना जरूरी है।  हमें केवल भाग्य के सहारे हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठना चाहिए। इसी लिए गीता में भी श्रीकृष्ण भगवान ने कहा है:-

  कर्मण्ये मा अधिकारस्ते मा फलेषु कदाचनः ।।

   तुलसी दास जी ने भी रामचरितमान में कहा है :-

कर्म प्रधान विश्व करि राखा। जो जस करय तस फल चाखा।।

     अर्थात  कर्म को ही प्रधान माना गया है।

आज की दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना ।
नरेश शर्मा " पचौरी "

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6 Comments

👌👌👌

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प्रिशा

26-Mar-2023 10:51 AM

बेहतरीन 👌👌

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Mahendra Bhatt

26-Mar-2023 09:53 AM

बहुत खूब

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